Friday, November 23, 2012

उम्मीद यानी पाई की कहानी

फिल्म इल्म- लाइफ ऑफ पाई

दबंगो और सरदारों के सिनेमा के बीच कुदरत से इतने करीबी रिश्ते की फिल्म में धरती उतनी ही है जितने इस पूरी कायनात में इंसान। यानी निर्देशक स्थापित करता है कि कायनात में हमारा वुजूद कोई बहुत बडा नहीं है, और जीवन और मौत के बीच जिंदगी से प्रेम कैसे होता है..



आंग ली की यह फिल्म भारत से और दक्षिण भारतीय धुनों में रचे गए संगीत में तमिल शब्दों के साथ शुरू होती है तो हॉलीवुड की फिल्म अपनी सी लगते हुए जोडती चली जाती है, समंदर की लहरों पर आगे बढती है। पूरी फिल्म कायनात के साथ इनसानी रिश्तों का ही तानाबाना है। पांडिचेरी में रहने वाले एक परिवार में पिता फैसला करते हैं कि अब वे कनाडा जाकर रहेंगे, पांडिचेरी में रेस्त्रां के साथ जू भी चलाने वाले मुखिया का परिवार जू के कुछ जानवरों के साथ समंदर के सफर पर निकलता है और समंदर के बीच उनका जहाज समुद्री दुर्घटना का शिकार हो जाता है और उसमें केवल लगभग पंद्रह साल का लडका पाई बचता है, समंदर में लाइफ बोट पर उसके रोमांचक सफर की जादुई दास्तान है- 'लाइफ ऑफ पाई' जिसे ऑस्कर विजेता निदेंशक आंग ली शानदार तरीके से रचा है।


पाई बचपन से ही ईश्वरीय खोज(सब धर्मो को जानने का उत्सुक और एक साथ स्वीकार तथा व्यवहार करने का अभिलाषी ) और रूचि का व्यक्ति था, और समंदर के इस सफर में वह लगातार ईश्वर से बात करता चलता है, उसे महसूस करता चलता है। इरफान व्यस्क पाई की भूमिका में है जो लेखक को कहानी सुना रहे हैं, तो एक सूत्रधार की तरह ही पर्दे पर अवतरित हुए हैं, बालक पाई की मां की भूमिका में छोटी सी भूमिका तब्बू की है और पिता के रूप में अदिल हुसैन और दोनों ने ही छोटी भूमिकाओं में खुद का दर्शक के जेहन में संजोकर ले जाने लायक काम कर दिया है। समंदर में तीन जानवरों जिनमें दो जल्दी ही मारे जाते हैं, के साथ लंबे समय तक बंगाली टाइगर के साथ जीवन जीना सीखने और कुदरत के बीच बिना किसी मानवीय साथ के जी लेने की जददोजहद करते दिखाया है। बीच में वह एक अनदेखे और अविश्वसनीय द्वीप पर भी पहुंच जाता है जो दरअसल एक आदमखोर द्वीप है, और जहां नेवले बहुतायत में है।

बुकर पुरस्कार से सम्मानित यान मर्टेल की किताब का यह सिनेमाई रूपांतरण देखते हुए लगातार डेनियल डिफो का पात्र रॉबिंसन क्रूसो याद आता है, जिसमें एक किशोर घर से जिद करके समंदर के लिए निकल पडता है और भटक जाता है और 28 साल एक निर्जन टापू पर गुजारता है। दबंगो और सरदारों के सिनेमा के बीच कुदरत से इतने करीबी रिश्ते की फिल्म में धरती उतनी ही है जितने इस पूरी कायनात में इंसान। यानी निर्देशक स्थापित करता है कि कायनात में हमारा वुजूद कोई बहुत बडा नहीं है, और जीवन और मौत के बीच जिंदगी से प्रेम कैसे होता है, इसकी झलक पूरी फिल्म में है। समंदर में जिस सूत्र के सहारे पाई जिंदा रहता है वह है कि 'उम्मीद कभी मत छोडो', समंदर से बाहर धरती पर भी बेहतर जिंदगी का रास्ता भी यह उम्मीद ही देती है।

1 comment:

Era Tak said...

kudrat me kab kya ho jaye pata nahi...jo sochte the sada ke liye hai..ek pal me bichad gaya...Movie zaroor dekhenge