Saturday, January 14, 2012

कविता जैसा कुछ


जिंदा लाशें जश्न मनाती हैं


किसी के साथ ना होने से कोई नहीं मरता
ऐसी बातें अच्छी लगती हैं पर सच्ची नहीं होतीं कि -
''जैसे मर जाएंगे हम एक दूसरे के बिना या जिंदा लाश ही हो जाएंगे हम ''
जिंदा रहते हुए मर जाना भी कोई खयाल होता है किताबों में
मर कर जिंदा रहने का जैसे
मरते हुए जिंदा रहते हुए मौत को याद करता भी एक शाइराना खयाल हो सकता है देवदास सा
देवदास का खयाल भी तो किताबी सा है !
प्रेम में जिंदा हो जाने या नई जिंदगी भर देने जैसे महान खयाल भी तो देते हैं शाइर- कवि लोग
भूल जाते है वे खुद भी कि साथ बनाता है जिंदगी को जिंदगी सा
और साथ छूटना भी जिंदगी को संभव अगर किसी तरह तो हम क्यों झूठ बोलते हैं खुद से ही कि नहीं रह पाएंगे तुम्हारे बगैर!
रह लेते हैं, जी लेते हैं, सह लेते हैं खुश भी ...और खुश भी इतने कि कभी कभी लगता है कि ये हंसी ये खिलखिलाहट तो तब भी नहीं थी जब खुश थे, साथ के अहसास के साथ दोनों !
जीना हर हाल में संभव हो जाता है, जिंदा लाशें जश्न मनाती हैं !!

1 comment:

तरूण कुमार said...

जीना आसान कभी नहीं होता फ़िर भी जीना पड़ता हैं । कभी अपनों के लिए , कभी अपने उस दर्द के लिए जो हमारे बाद अकेला न पड़ जाए।